Dussehra kyu manate hai durga puja 2024 jankari दशहरा क्यों मनाते हैं दुर्गा पूजा 2024 की जानकारी

Dussehra kyu manate hai durga puja 2024 jankari 

दशहरा क्यों मनाते हैं: सम्पूर्ण जानकारी

दशहरा या विजयदशमी भारत का एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है जो पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है,

बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी है। दशहरा का पर्व हर साल आश्वयुजा शुक्ल दशमी को मनाया जाता है, जो भारतीय पंचांग के अनुसार, सितंबर या अक्टूबर में आता है।

दुर्गा पूजा 2024 की जानकारी

दुर्गा पूजा, जिसे “दुर्गोत्सव” भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है,

जिसे देवी दुर्गा की शक्ति और विजय का उत्सव मनाने के लिए मनाया जाता है। 2024 में, दुर्गा पूजा की तिथियां और कार्यक्रम निम्नानुसार हैं:

दुर्गा पूजा 2024 की तिथियां:

  • महालय: 2 अक्टूबर 2024 (बुधवार)
    • महालय से दुर्गा पूजा का अनौपचारिक आरंभ होता है, जब देवी दुर्गा को धरती पर आमंत्रित किया जाता है।
  • षष्ठी (महाषष्ठी): 10 अक्टूबर 2024 (गुरुवार)
    • इस दिन देवी दुर्गा की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होती है। पूजा पंडालों में देवी की मूर्तियों का आगमन होता है और पूजा की औपचारिक शुरुआत की जाती है।
  • सप्तमी (महासप्तमी): 11 अक्टूबर 2024 (शुक्रवार)
    • सप्तमी के दिन देवी दुर्गा का आह्वान और पूजा शुरू होती है। इस दिन से दुर्गा की महालड़ाई राक्षस महिषासुर के साथ शुरू होती है।
  • अष्टमी (महाअष्टमी): 12 अक्टूबर 2024 (शनिवार)
    • अष्टमी दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन “कुमारी पूजा” और “संधि पूजा” की जाती है। संधि पूजा महाअष्टमी और महानवमी के बीच की जाती है, जो शक्ति और विजय का प्रतीक है।
  • नवमी (महानवमी): 13 अक्टूबर 2024 (रविवार)
    • नवमी का दिन भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जब दुर्गा पूजा का मुख्य कार्यक्रम संपन्न होता है। इस दिन दुर्गा मां के महिषासुर वध की कथा को प्रमुखता से मनाया जाता है।
  • विजयादशमी (दशहरा): 14 अक्टूबर 2024 (सोमवार)
    • विजयादशमी के दिन देवी दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है, और यह दिन देवी दुर्गा की महिषासुर पर विजय का उत्सव होता है। इसी दिन को दशहरा के रूप में भी मनाया जाता है।

दशहरा का महत्व:

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  • दुर्गा पूजा देवी दुर्गा की महाशक्ति और राक्षस महिषासुर पर उनकी विजय को मनाने का पर्व है। यह 5 दिनों का पर्व विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा और बिहार में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
  • इस पर्व में पंडाल सजाने, देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना, पारंपरिक नृत्य, गीत-संगीत, और विशेष प्रकार के भोजन का आयोजन होता है।
  • दुर्गा पूजा सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह लोगों को एकजुट करता है और आपसी भाईचारे को प्रोत्साहित करता है।
  1. धार्मिक महत्व:
    • रामायण की कथा: दशहरा की मुख्य धार्मिक कथा रामायण से जुड़ी है। इस दिन भगवान श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया था। रावण ने माता सीता का अपहरण किया था, जिसे छुड़ाने के लिए भगवान राम ने लंका पर आक्रमण किया और रावण का वध किया। इस प्रकार, अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक दशहरा है।
    • माँ दुर्गा की पूजा: दशहरा के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा भी की जाती है, जो विशेष रूप से उत्तर भारत और पश्चिम बंगाल में मनाई जाती है। इस दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर नामक दानव का वध कर धरती पर शांति स्थापित की थी। यह विजय भी अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।
  2. सांस्कृतिक महत्व:
    • रामलीला का आयोजन: दशहरा के अवसर पर रामलीला का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान राम की कथा का नाटकीय प्रदर्शन होता है। यह आयोजन शहरों और गाँवों में बड़े धूमधाम से किया जाता है।
    • रावण दहन: दशहरा के दिन शाम के समय रावण, मेघनाथ, और कुंभकर्ण के पुतलों को जलाया जाता है। यह क्रिया बुराई के प्रतीक रावण और अन्य राक्षसों के वध की याद दिलाती है।
  3. ऐतिहासिक महत्व:
    • विजय की प्रतीक: दशहरा की तिथि को ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। यह दिन भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण विजय और सफलताओं से जुड़ा हुआ है।
  4. आध्यात्मिक महत्व:
    • स्वयं की विजय: दशहरा केवल बाहरी शत्रुओं की विजय का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आत्मिक और मानसिक शत्रुओं, जैसे कि अहंकार, क्रोध, और बुराई पर विजय प्राप्त करने का भी संदेश देता है।

दशहरा के आयोजन की प्रक्रिया:

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  1. रावण की मूर्तियों का निर्माण और सजावट: दशहरा के कुछ दिनों पहले रावण, मेघनाथ, और कुंभकर्ण की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और इन्हें सुंदर ढंग से सजाया जाता है।
  2. रामलीला का आयोजन: पूरे पंधरह या दस दिनों तक रामलीला का आयोजन किया जाता है जिसमें भगवान राम की कथा का प्रदर्शन होता है।
  3. रावण दहन: दशहरा के दिन शाम के समय रावण, मेघनाथ, और कुंभकर्ण की मूर्तियाँ जलायी जाती हैं। यह बुराई के अंत और अच्छाई की विजय का प्रतीक होता है।
  4. माँ दुर्गा की पूजा: कुछ क्षेत्रों में दशहरा के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा की जाती है। लोग पूजा अर्चना के बाद विभिन्न प्रकार के पकवान बनाते हैं और उन्हें परोसते हैं।
दशहरा का ऐतिहासिक संदर्भ:
  • मौर्य साम्राज्य में दशहरा:

  • मौर्य साम्राज्य के दौरान दशहरा का आयोजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण था। सम्राट अशोक के समय में भी विजय पर्व के रूप में इसे मनाया जाता था, और यह एक प्रमुख त्योहार बन गया था।

  • दशहरा और राजसी विजय:

  • दशहरा का पर्व राजा विक्रमादित्य और अन्य राजाओं के समय में भी प्रमुख था। विजयादशमी के दिन विशेष विजय पर्व मनाए जाते थे जो राजकीय विजय और सैन्य सफलता के प्रतीक होते थे।

दशहरा के विभिन्न प्रकार के आयोजन:
  • उत्तर भारत:

  • उत्तर भारत में दशहरा को विशेष रूप से भव्य तरीके से मनाया जाता है। यहाँ बड़े पैमाने पर रामलीला का आयोजन किया जाता है और रावण, मेघनाथ, और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं।

  • पश्चिम बंगाल और बिहार:

  • यहाँ पर दशहरा के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन बड़े धूमधाम से किया जाता है। इस समय माँ दुर्गा की भव्य मूर्तियाँ सजाई जाती हैं और भव्य पंडाल सजाए जाते हैं।

  • दक्षिण भारत:

  • दक्षिण भारत में दशहरा को “नवरात्रि” के अंत के रूप में मनाया जाता है। यहाँ यह पर्व विशेष रूप से “सप्तमी” और “अष्टमी” के दिनों के साथ जुड़ा होता है।

दशहरा के पारंपरिक व्यंजन:

  • खीर और मिठाइयाँ:

  • दशहरा के अवसर पर विशेष मिठाइयाँ और पकवान बनाए जाते हैं। खीर, पूरियां, और विशेष प्रकार की मिठाइयाँ जैसे कि “कलाadi” और “हलवा” आमतौर पर बनाए जाते हैं।

  • भोजन की विशेषता:

  • त्योहार के दिन परिवार और दोस्तों के साथ विशेष भोजन किया जाता है। यह भोजन अक्सर बहुत ही स्वादिष्ट और विविध होता है, जिसमें कई प्रकार के पकवान शामिल होते हैं।

दशहरा के सामाजिक प्रभाव:

  • समाज में एकता और सहयोग:

  • दशहरा का पर्व समाज में एकता और सहयोग को बढ़ावा देता है। यह लोगों को एक साथ लाने का एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, जहाँ लोग मिलकर खुशियाँ मनाते हैं और सामूहिक गतिविधियों में भाग लेते हैं।

  • स्थानीय त्योहार और मेले:

  • कई स्थानों पर दशहरा के अवसर पर स्थानीय मेले और उत्सव आयोजित किए जाते हैं, जिसमें खेल, नृत्य, और सांस्कृतिक कार्यक्रम शामिल होते हैं। ये मेले स्थानीय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने का भी एक माध्यम होते हैं।

दशहरा के पर्यावरणीय पहलू:

  • सस्टेनेबल पहल:

  • हाल के वर्षों में, पर्यावरण संरक्षण के लिए दशहरा के उत्सवों में रावण के पुतलों को पर्यावरण के अनुकूल सामग्री से बनाने और उनका पुनर्चक्रण करने की पहल की जा रही है।

  • पॉल्यूशन कंट्रोल:

  • रावण दहन के दौरान धुएं और प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय भी किए जा रहे हैं, जैसे कि कम प्रदूषण वाले पुतलों का उपयोग और दहन के लिए विशेष उपाय।

निष्कर्ष:

दशहरा का त्योहार हमें अच्छाई की बुराई पर विजय, सत्य और धर्म की रक्षा का संदेश देता है।

यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है।

इस दिन के आयोजन और पर्व के विभिन्न पहलुओं से हम यह सीख सकते हैं कि बुराई चाहे कितनी भी बड़ी क्यों न हो, अच्छाई हमेशा विजयी होती है।

दशहरा न केवल एक धार्मिक त्योहार है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, ऐतिहासिक परंपराओं, और समाजिक एकता का प्रतीक भी है।

यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय, आत्म-समर्पण, और सामूहिक उत्सव का संदेश देता है।

दशहरा के विविध पहलुओं को समझकर हम इसे और अधिक अर्थपूर्ण तरीके से मनाने की प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं

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